Thursday, July 27, 2017

कैंसर रोग में राहु जिसे विष माना गया है का मुख्य योगदान होता है।

कैंसर का मुख्य कारण अप्राकृतिक या प्रकृति के विरुद्ध जीवन शैली को माना गया है। आजकल प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग , जंक फ़ूड का सेवन , अनियमित समय पर भोजन , जीवन चर्या में कोई नियम नहीं कभी भी खाना कभी भी सोना ये सभी करना हमारे शरीर की कार्यप्रणाली को बोझ डालते हैं जिससे अन्तरविश स्नायु प्रभाव बढ़ता है। अन्तरविश से उत्पन्न उततेजना जब कोशिकाओं की सहनशीलता से बढ़ जाती हैं तब शारीरिक सेल(कोशिका ) का रूप बदल जाता है तथा परिणाम कैंसर जैसा भयानक होता है।
१)
कैंसर रोग में राहु जिसे विष माना गया है का मुख्य योगदान होता है। राहु का किसी भाव या भावेश से सम्बन्ध , राहु ग्रह भाव या भावेश का रोग कारक ग्रह या स्थान से सम्बन्ध , शरीर में विषाक्त प्रभाव बढ़ा कर विष जन्य रोग पैदा करता है।
२) शनि काल पुरुष का दुःख है तथा मंगल शल्य क्रिया या फोड़ो मवाद का कारक है। शनि का सम्बन्ध मंगल से हो तो कैंसर रोग की सम्भावना बढ़ती है। अधिकांशतः कुंडलियों में जल तत्व राशि कर्क , वृश्चिक, मीन , वायु तत्व राशि तुला पाप प्रभाव में पायी गयी हैं।
३) अधिकांश मामलों में मंगल , गुरु ,शनि का दृष्टि , युति , क्षेत्र या नक्षत्र सम्बन्ध पाया गया है। जहाँ गुरु ग्रंथि की वृद्धि एवं प्रसार को दर्शाता है तथा मंगल एवं शनि कालपुरुष की ध्वंसात्मक शक्तियां होने से रोग को जटिल एवं उग्र बनाते हैं। स्वस्थ का नैसर्गिक करक सूर्य पापी हो त्रिक भाव में हो , त्रिकेश से दृष्ट या युक्त हो तब कैंसर रोग की सम्भावना बढाती है।



उदहारण :-उपरोक्त कुंडली में जातक की मिथुन लगन एवं कन्या राशि है।  हस्त नक्षत्र का जनम है।  जातक के द्वितीय भाव में गुलिक बना हुआ है।  राहु त्रिक भाव में है द्वितीय भाव को पूण दृष्टि से देख रहा है वही काल पुरुषकी राशि बृषभ पर भी राहु की दृष्टि है . शनि की पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर है।  जातक के सूर्य एवं चन्द्रमा मंगल से पीड़ित हैं एवं केतु की पूर्ण दृष्टि है जो की मंगल के नक्षत्र में है।  लगनेश बुध कमजोर है।  भाव चलित में गुरु द्वितीय भाव में खिसक गया जिसने रोग को बढ़ाया।  अगर हम सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो जातक का द्वितीय भाव पीड़ित है चूँकि शनि की राहु की पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर है वहीँ चन्द्रमा सष्टेष मंगल , त्रिक भाव के स्वामी सूर्य एवं लग्नेश बुध के साथ युति कर रहा है।  जहाँ चन्द्रमा एवं बुध अतिशत्रु हैं। नवांश में सूर्य वर्गोत्तम है शनि में मंगल  की दशा में कैंसर रोग बना होगा।  राहु की दशा बुध नक्षत्र में होने से रोग में कष्ट के साथ लाभ भी हुआ होगा क्योंकि कुंडली में बुद्ध अच्छा का होकर सुख में बैठा है।  शनि में गुरु की दशा में गुरु मघा नक्षत्र का है मुख रोग में वृद्धि करेगा।  अतः गुरु का पूजा  जाप  दान अति आवश्यक है रोग शमन के लिए।  मिथुन लगन के लिए गुरु पापी ग्रह है।


बुध २५ डिग्री का होकर मंगल के नक्षत्र में त्रिक भाव के स्वामी सूर्य एवं मंगल से पीड़ित है जो की लगनेश भी है जिसने देह को कमजोर बनाया।  मुख के कैंसर में बुध पीड़ित होता है अतः मुख का कैंसर बुध ने दिया जो की मंगल नक्षत्र में है सुब लार्ड राहु है।  घाव का सम्बन्ध षष्ट भाव , कन्या राशि तथा मंगल पाप ग्रहों से युति तथा दृष्टि केतु की से हुआ। गोचर के अनुसार शनि धनु राशि में है जो की अपने घर से व्यय भाव में है वही गुरु तुला राशि में अपने घर से ग्यारहवे एवं आठवे भ्रमण करेंगे जो प्रबल मारकेश बना रहे है।  अतः जातक को किसी विद्वान् से महा मृत्युंजय का जाप करना चाहिए।  केतु की पूर्ण दृष्टि चन्द्रमा , सूर्य, मंगल एवं बुध पर है।  केतु के इष्ट देव गणेश जी हैं एवं उनमे सभी पंचभूत ( पृथ्वि , जल , अग्नि, वायु एवं आकाश तत्व ) विराजमान हैं।  कैंसर का मुख्य कारण राहु , शनि , मंगल , केतु चन्द्रमा एवं सूर्य का कमजोर होना है।  क्योंकि राहु , शनि मंगल का अशुभ होना विष का कारण होता है।  गुरु केतु के नक्षत्र में होकर उस में वृद्धि कर रहा है।  अतः गणेश उपासना हितकर रहेगी।  गणेश मंत्र का  कम से कम सवा लाख जाप तथा गणेश कवच का  नियमित पाठ करना चाहिए।
तुलसी का सेवन दूध एवं दही के साथ कैंसर उपचार में बताया गया है।  श्यामा तुलसी को गाय के दूध में मिलकर रोगी को नियमित तीन मास तक करना चाहिए। गाय के दूध की दही बनाये कम से कम तुलसी की ५० पत्तियां दही में मिलाकर खाएं।  गाये के दूध की दही दिन में किलो लेनी है या सेर।  धीरे धीरे तुलसी की मात्रा बढ़ाते जाएँ जितना रोगी सहन कर सके।  ये प्रयोग मंगलवार या शनिवार को प्रारम्भ करें।  शुभमस्तु
मौली दुबे ( ज्योतिषाचार्य )

नॉएडा
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