Thursday, November 23, 2023

How planets play an important role in married life.

 When we talk about married life, the planets that are involved in marriage, appear in my mind and how these planets play an important role in married life.

Marriage between 2 people is bonding between 2 souls and we can say it is mutual understanding of two partners. It is like a business partner who is a lifelong partner. When we check marriage relationships in astrology, we check Venus for the male partner and Jupiter for the female partner. These two planets play a big role in marriage relationships. Venus is the planet of romance, sex, and pleasure which are necessary elements for the male partner to attract a female and maintain happiness in married life while for the female partner, it is necessary to have patience, spirituality, decency, and a caring nature along with marinating the house and all these are under Jupiter that is why female partner’s Jupiter position takes very important role in married life.

So, Venus must be strong in the male’s chart and Jupiter must be strong in the female’s chart to have a balanced married life and live an ideal couple.

This is a common factor in astrology theory. But if we can have deep analysis in astrology, there are so many formulas to check happiness and longevity in a married life. We should analyze the first, second, fifth, seventh, eleventh, and twelfth house while matching the horoscope for marriage.

The first house is the house of personality, appearance, and health of gender whereas the second house shows family, relationship, and wealth of people. The fifth house is the house of romance and kids.

The seventh house is the house of marriage partnership and understanding whereas the eleventh house is the house of desire fulfillment which is a very important part of a married life. The twelfth house is the house of sexual happiness which is the main part of the productivity of new life.

Hence the couple should improve their Venus to eat rice kheer on every Purnima and improve their Jupiter to take care of older people at home and worship lord Vishnu.

People should contact a good astrologer to check the position of the required houses’ lord and the density of the planet in a couple charts to improve the required houses in their chart.

Wednesday, January 5, 2022

आजके समय में टूटते रिश्ते

बदलते समय में पूर्व के नियम कितने सटीक बैठते है

प्राचीन समय में वैवाहिक मेलापक  में महत्वपूर्ण भूमिका गुण मिलान  की थी  कुंडली मिलान (Kundali Matching) के लिए ज़रूरी  तौर पर अष्टकूट गुण मिलान , मांगलिक दोष मिलान ,लग् मिलान और दशा मिलान  किया जाता है। इसके अलावा दूसरे, पांचवे, सातवें और ग्यारहवें भाव का विश्लेषण वर और कन्या  के आगामी जीवन के बारे में सटीक जानकारी दे देता है।३६ गुण में से कम से कम १८ गुण मिलना ज़रूरी हैं  जिसमे नाड़ी दोष एवं गण दोष को महत्वपूर्ण माना जाता रहा है ।आज कल के दौर में गुण मिलान के बावजूद वैवाहिक जीवन में कलेश , करवाहट एवं सम्बन्ध विच्छेद देखे जा रहे हैं उसकी सबसे बड़ी बजह बदलते परिवेश , सामाजिक स्तर में बदलाव , दुनिया का ग्लोबलिज़शन , पुरुष महिलाओं का साथ - साथ कार्य करना  , महिलाओं का आत्मनिर्भर होना, प्रेम विवाह का प्रचलन  बढ़ना , लिविंग रिलेशन आदि को माना जा सकता है प्राचीन काल में  किसी  वर कन्या की कुंडली मेलापक में गुण मिलाकर विवाह संपन्न हो जाता था उस समय विवाह प्रचलन कम उम्र में विवाह का था, वधु ससुराल के नियम तौर तरीके बचपन से सीखती थी उसे परेशानी का अनुभव नहीं होता था परन्तु आज के दौर में बड़ी उम्र में विवाह दोनों पक्ष समझदार होते हैं तो इतनी आसानी से हर नियम का अनुसरण करना उनके लिए सम्भव्  नहीं है। 

 

आइये ज्योतिष के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करें :-

वर                                                                   कन्या

                                                      

  नवम्बर १९७७                                        अप्रैल १९८५

   २०:४५                                                    १३:०५

    दिल्ली                                                   ग्वालियर

 

कन्या वर के ३६ में से कुल गुण २७ मिलते हैं राशि से गिनने पर कन्या एवं वर की राशि में - ११ का मेलापक है जो अच्छा माना जाता है नक्षत्र से भी दोनों का मेलापक अच्छा है परन्तु फिर भी आज स्थिति ये है की दोनों एक दूसरे के साथ जीवन यापन नहीं करना चाहते नौबत तलाक तक चुकी है

कारण अगर आप ध्यान से देखें तो  कन्या  की कुंडली में  द्वितीय भाव का स्वामी सूर्य नवम में शुक्र एवं बुध के साथ बैठा है वहीँ राहु की दृष्टि द्वितीय भाव पर है जबकि  वर की कुंडली में द्वितीय भाव का स्वामी चन्द्रमा चतुर्थ में राहु के साथ बैठा है एवं मंगल द्वितीय भाव में जो दोनों  ही कुंडलियों में वर कन्या को वाणी  संयम  होना उत्तेजित एवं क्रोधी स्वाभाव का बना रहा है ।इसी तरह  पंचम एवं सप्तम भाव भी पीड़ित है जातिका अति महत्वकांशी है जबकि वर की कुंडली में ऐसा कुछ प्रतीत नहीं होता . एक ही स्तर का होना वैचारिक मदभेद , क्रोधी स्वाभाव दोनों की पत्रिका में अलगाव  का कारण बन रहा है. अतः आज के दौर में कुंडली मिलाना के समय केवल गुण मिलाना ही ज़रूरी नहीं है वैचारिक स्तर , मानसिक स्तर , आपसी मन सम्मान , महत्वांक्षा , आपसी प्रेम अति आवश्यक है  .

 

आइये दूसरी कुंडली को उदहारण स्वरूप समझें जिन्होंने  प्रेम विवाह किया .

वर                                                                                  कन्या

२३ मई १९८२                                                                    दिसम्बर  १९९०

  :00                                                                                १९ : ५५

  कश्मीर                                                                                दिल्ली

 

 

 

वर कन्या के गुण २० मिलते हैं. नाड़ी दोष नहीं है . परन्तु गृह मैत्री नहीं है .      दोनों ने घर वालों को समझा कर प्रेम विवाह माता पिता की रजा मंदी से किया जो अच्छे दोस्त थे अब विवाह बांधना में बंध गए २०१४ में विवाह हुआ परन्तु अप्रैल २०१५ से ही आपसे मन मुटाव लड़ाई झगड़े होने लगे लड़की को लड़के के परिवार में जाना अपने ससुराल में घुलना मिलना नामंज़ूर था लड़के ने बहुत कोशिश की रिश्ता निभाने की परन्तु २०१७ में उनका तलाक हो गया .

अगर  गहरायी से दोनों की कुंडली का अध्यन करें तो पता चलता है . राहु में शुक्र की दशा में प्रेम हुआ शुक्र के कारण दोनों एक दूसरे से आकर्षित हुए . प्रेमी की कुंडली में पंचम भाव का स्वामी शुक्र अपने घर से छटे पड़ा है एवं दशम से आठवे वहीँ प्रेमिका की कुंडली में सप्तम भाव में बुध , शुक्र , शनि बैठे हैं एवं शय्या सुख में बैठे मंगल की दृष्टि है सप्तम भाव पर जो जातिका को चरित्रहीन  बनाती है एक से अधिक संबंधों की और इशारा करती है अधिक रूप से सदृण होने की ललक चका चोंध के कारण कदम बहके तथा  दोनों का द्वितीय , पंचम , सप्तम एवं ग्यारवा भाव पीड़ित है जिस कारण दोनों के आपसी सम्बन्ध ख़राब हुए यह  विवाह साल भी नहीं चल पाया .

आइये तीसरी कुंडली को उदहारण स्वरूप समझे

वर                                                                       कन्या

मार्च  १९८१                                                       २२ सितम्बर १९८५

२१:५५                                                                   ११:३०

जयपुर                                                                    जयपुर

 

 

वर कन्या के २४ गुण मिलते हैं परन्तु नाड़ी जैसा महा दोष विधमान है जो विवाह मेलापक के लिए अत्यंत ज़रूरी माना जाता है . इनका विवाह २०१२ में हुआ एवं २०१५ में पुत्र की प्राप्ति हुयी तथा अच्छा वैवाहिक जीवन चल रहा है . ज्योतिष नियम से देखे तो दोनों के आपसी समझ के लिए दोनों की राशि मैत्री है दोनों के द्वितीय भाव दोष रहित हैं पंचम भाव का भी आपसी सम्बन्ध अच्छा है वर का द्वितीयेश(धनेशएवं सप्तमेश होकर मंगल  लाभेश सूर्य एवं लगनेश शुक्र के साथ पंचम भाव में बैठा है जो वर वधु में प्रेम पूर्ण संबंधों की और इशारा कर रहा है . सप्तम भाव भी भी दोष रही टी है ग्यारवा भाव इक्षापूर्ति  एवं लाभ की सम्भावना बना रहा है जो इनके सफल वैवाहिक जीवन की और इशारा  करता है .

अतः कुंडली मिलान करते समय गुण मिलान के साथ साथ कुंडली के भाव संबंधों की भी जाँच पड़ताल अच्छे से करना आवश्यक है   जिससे आज के दौर में जो रिश्ते बिगड़ रहे हैं उनको संभाला जा सके .

धन्यवाद

मौली दुबे

ज्योतिषचार्य