Monday, October 9, 2017

कुंडली में विधवा/विधुर योग



कुंडली में वैधव्य योग स्त्री के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होता हे इससे बुरा योग एक स्त्री के जीवन में कोई दूसरा नहीं हो सकता।  ईश्वर से यही प्राथना हे किसी स्त्री को जीवन में ऐसी दुखत घडी आये।  परंतु विधाता को जो मंजूर होता हे उसके सामने इंसान विवश है।  आइये कुछ योगों पर विचार करें जो अगर स्त्री की कुंडली में हों तो वैधव्य हो जाती  है। 

राहु लग्न में हो तथा मंगल अष्टम भाव में हो या द्वादश भाव में हो।
  जन्म लगन या चंद्र लगन में सप्तम या अष्टम भाव में सूर्य , मंगल , शनि राहु चारों हो।
सप्ताह भाव में मंगल पाप ग्रहो के साथ हो अथवा सप्तमस्त मंगल पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो।
सप्तम भाव पाप मध्य में हो अर्थार्थ षष्ट और सप्तम में पाप ग्रह हो तथ सप्तम भाव पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो। 
सप्तमेश अष्टमेश अष्टम में हो तथा उन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो। 
अष्टमेश सप्तम में हो तथा सप्तमेश पीड़ित हो।
सप्तमस्थ मंगल पर शनि की दृष्टि हो।
षष्ट भाव में चन्द्रमा , मंगल सप्तम भाव में राहु तथा अष्टम  में शनि हो।
सप्तम अष्टम में राशि परिवर्तन हो।
१० अष्टमेश पाप नवमांश में हो।
११ सप्तमेश अष्टमेश की युति द्वादस भाव में हो तथा सप्तम भाव पाप ग्रस्त हो।
१२ लगनेश अष्टमेश द्वादस भाव में हो तथा अष्टम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो।
१३ गुरु शुक्र की युति हो तथा सुकर गुरु से अंशों में पीछे हो। 
१४ षष्टेश सप्तम में , सप्तमेश अष्टम या द्वादस में हो तथा द्वादशेश सप्तम भाव में हो।
१५ सप्तमेश अस्त हो तथा सप्तम भाव  पाप ग्रस्त हो। 





)
उदाहरण : -
लिंग :- स्त्री
जन्म तारिख  :- १८ अगस्त १९५५
जन्म समय :-  :४४
जन्म स्थान :- मुम्बई

जातिका का कर्क लग्न है लग्न में शुक्र गुरु की युति है एवं दोनों अस्त हैं।  कन्या का नवमांश है.
जातिका की पत्रिका में सप्तमेश शनि उच्च का बैठा है वो भी विशाखा नक्षत्र में जिसने विवाह कराया।  अगर आप देखेंगे नवांश में शनि नीच का होकर मंगल, राहु , सूर्य चन्द्रमा के साथ बैठा है जो की वैधव्य योग पत्रिका में दर्शता है दूसरे नंबर  के कॉलम में इन्ही सब ग्रहों का उल्लेख  किया गया है।
  हम अगर लग्नकुंडली से देखे तो  लग्नेश , तृतीयेश , सुखेश , भाग्येश एवं बारवेश सभी अस्त हैं।  सूर्य मात्रा अंश का है जो कुटुम्भ स्थान का स्वामी है।  तथा सप्तम से अष्टम है याने पति की आयु का स्थान।  शनि सप्तमेश होकर उच्च का हे जो विवाह सुख दर्शाता है परंतु सप्तम भाव पर गुरु की नीच की दृष्टि जो की अश्लेष गंडमूल नक्षत्र में है।  छटे घर में राहु एवं भरहवे केतु है।  सप्तम भाव पाप पीड़ित है।  गुरु शुक्र की साथ में युति एवं मात्रा अंशों से शुक्र आगे है।  सारे ग्रह बैबाहिक सुख को नगण्य बता  रहे हैं एवं वैवाहिक सुख का आभाव दर्शाता है। 

)
लिंग:- पुरुष
 जन्म तारिख  :- १४ सितम्बर १९७८
जन्म समय :-  :५९
जन्म स्थान :- भोपाल

जातक  की कर्क लग्न है।  कर्क का ही नवमांश है जो की वर्गोत्तम है।  लगन में उच्च का गुरु है पुष्य नक्षत्र में है।  सप्तम भाव में चंद्र में है सप्तमेश शनि द्वितीय भाव में सूर्य एवं बुध के साथ बैठा है।  सूर्य शनि एक साथ कुटुम्भ स्थान में उथल पुथल करते हैं।  सप्तमेश होकर शनि अस्त है एवं केतु के नक्षत्र में है।  सप्तम भाव में  चन्द्रमा पर राहु की दृष्टि है।  नवांश में सप्तम भाव में राहु शुक्र के साथ हे बुध केतु एवं शनि लगन में है।  चंद्र कुंडली से देखने पर शनि , बुध एवं सूर्य अष्टम भाव में बैठे हैं जो की बुध षष्टेश होकर अष्टमेश सूर्य के साथ बैठा है शनि से युक्त है जो की लगनेश हे चंद्र कुंडली से।  कॉलम नंबर १४ देखें वैधव्य योग बनता है।  परंतु उच्च का गुरु सभी दोषों को दूर करने वाला मन गया है जो की डिग्री का है एवं पुष्य नक्षत्र में है अतः इस बेधव्य योग को उपाय द्वारा टाला जा सकता है। 

  शनि का जाप करे एवं शनि देव की विधि विधान से पूजा करे.
घट विवाह करे शादी से पूर्व। 
शिव गौरी परिवार की उपासना करे। 
सुन्दरकाण्ड का पाठ करे। 


)
लिंग :-  पुरुष
 जन्म तारिख  :- २८ फरबरी १९४७
जन्म समय :-  : ०२
जन्म स्थान :- इंदौर

जातक की मीन लग्न की कुंडली है जिसमे सप्तमेश बुध नीच का होकर बैठा है एवं मात्र ००: ०१:२१ अंश , कला का है।  बुध पूर्व भाद्रपद नक्षत्र में है एवं वक्रीय है।  सप्तम भाव पर शनि एवं राहु  की दृष्टि है वही बारहवे भाव में सूर्य तथा मंगल बैठे हैं।  गुरु नवम भाव में केतु के साथ है जो अनुराधा नक्षत्र में है जिसकी दृष्टि सप्तमेश बुध पर है।  सभी योग मिलकर वैवाहिक सुख को नगण्य बना रहे  हैं।  चंद्र कुंडली से गुरु अष्टमेश होकर सप्तम भाव केतु के साथ  में गया है। मंगल सूर्य के साथ है।  जो वैधव्य योग का निर्माण कर रहा हे पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह दर्शाता है। 

)
लिंग :-  स्त्री
 जन्म तारिख  :- जून १९७८
जन्म समय :-  २३:४४
जन्म स्थान :- इंदौर

जातिका की मकर लगन की कुंडली है लगनेश शनि मंगल के साथ अष्टम भाव में बैठा है।  गुरु एवं शुक्र की युति कहते घर में बन रही है।  केतु की सप्तम भाव पर दृष्टि हैनवांश में चन्द्रमा नीच का है शनि अष्टम भाव में नीच का होकर मंगल शुक्र के साथ युति है।  ऊपर दिए योगो में कॉलम नंबर , , १३ सभी फलीभूत हो रहे है।  इस जातिका का विवाह सुख बहुत काम प्रतीत हो रहा है।  सप्तम भाव पाप पीड़ित है नवमांश पाप पीड़ित है।  सप्तमेश चन्द्रमा चतुर्थ भाव में सप्तम भाव का सुख दे रहा हे परंतु केतु  एवं सूर्य बुध के मध्य में पीड़ित हो रहा है वहीँ सुखेश मंगल अष्टम भाव में शनि के साथ चला गया. जैक का वैवाहिक सुख की हानि करता है विवाह अगर हो गया हे इस जातिका का तो वैधव्य योग केसंकेत    पत्रिका में बन रहे हैं।  स्त्री की कुंडली में गुरु का महत्वपूर्ण योगदान होता है यहाँ देखेंगे की गुरु पाप पीड़ित है लगन कुंडली से , नवमांश से एवं चंद्र कुंडली से भी।   परन्तु चंद्र कुंडली से गुरु भाग्येश होकर सप्तम भाव को देख रहा हे जो की अल्प सम्भावना देता है की इस दोष को टाला जा सकता है।  चूँकि मैं मानती हूँ गुरु बुरे से बुरे दोष का भी परिहार करने में सक्षम होता है।  कुछ ऊपर करने पर इन दोष को टाला जा सकता है। 
) जातिका मंगल गौरी ब्रत करने का संकल्प करे एवं विवाह के पांच साल मंगला गौरी का व्रत रखे पूरी विधि विधान से गौरी जी की पूजा करे  सुहाग बना रहेगा। 
जातिका  का विवाह से पूर्व कुम्भ विवाह कराया दिया जाये. शालिग्राम जी के साथ विवाह कराया जाये। 
नित्य  गौरी- शंकर की पूजा करे एवं गौरी जी पर सिन्दूर चढ़ाये। 

  )

लिंग :-  पुरुष
 जन्म तारिख  :- दिसम्बर १९६०
जन्म समय :-  १८:१८
जन्म स्थान :- दिल्ली

जातक की मिथुन लगन की कुंडली है लगन में मंगल एवं चन्द्रमा है वही बुध छटे भाव में सूर्य के साथ बैठा है।  बुध मंगल में राशि परिवर्तन हो रहा है।  सप्तम भाव में सप्तमेश गुरु अष्टमेश शनि के साथ बैठा है।  सप्तम भाव पर राहु की दृष्टि है मंगल की दृष्टि है नवमांश में सप्तम में मंगल बैठा है वही शुक्र सूर्य से पीड़ित है सभी योग वैधव्य योग का निर्माण कर रहे है . जातक की कुंडली में दो विवाह के योग बन रहे है पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी के योग बन रहे है।  दूसरी पत्नी से भी विवाह सुख में बढ़ है जिसको उपाय द्वारा सुधार जा सकता है। 
मंगल यन्त्र की नियमित पूजा
सुन्दर कांड का पाठ
शिव परिवार की विधि विधान से पूजा।
गरीब कन्या के विवाह में कुछ धन देना एवं सुहाग का सामान दे। 
शुक्र को अच्छा करने के लिए किसी गरीब  विधवा का विवाह कराये या उसको जीवन यापन के लिए धन का दान करें। 
  )
लिंग :-  स्त्री
 जन्म तारिख  :-२० अप्रैल १९६१
जन्म समय :-  २१:२५
जन्म स्थान :-भोपाल

जातिका की वृश्चिक लगन की कुंडली है।  लगनेश षष्टेश मंगल अष्टम भाव में भाग्येश चंद्रमा के साथ है।  सप्तमेश पंचम भाव में उच्च का होकर नीच के अष्टमेश के साथ है।  गुरु शनि से पीड़ित है।  सप्तम भाव पाप मध्य है।  नवमांश में भी मंगल मिथुन का है अतः वर्गोत्तम है जो की प्रबल मारक बन गया है जीवन साथी का।  चंद्र कुंडली से भी गुरु सप्तमेश होकर अष्टम भाव में  अष्टमेश शनि का साथ चला गया।  मंगल की पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर।  सभी योग मिलकर विवाह सुख को नगण्य बना रहे है एवं बैधव्य होने की पुष्टि दे रहे हैं।    उपाय से दोष मुक्त होने की सम्भावना कम है।